विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दद्वितीय अध्यायध्यायतो विषयान्पुंसः संगस्तेषूपजायते। विषयों का चिन्तन करनेवाले पुरुष की उन विषयों में आसक्ति हो जाती है। आसक्ति से कामना उत्पन्न होती है। कामना-पूर्ति में व्यवधान आने से क्रोध उत्पन्न होता है। क्रोध किसे जन्म देता है- क्रोधाद्भवति सम्मोहः सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः। क्रोध से विशेष मूढ़ता अर्थात् अविवेक उत्पन्न होता है। नित्य-अनित्य वस्तु का विचार नहीं रह जाता। अविवेक से स्मरण शक्ति भ्रमित हो जाती है (जैसा अर्जुन को हुआ था-‘भ्रमतीव च मे मनः।[1] गीता के समापन पर उसने कहा- ‘नष्टो मोहः स्मृतिर्लब्धा।’[2] क्या करें, क्या न करें?- इसका निर्णन नहीं हो पाता।), स्मृति भ्रमित होने से योगपरायण बुद्धि नष्ट हो जाती है और बुद्धिनाश होने से यह पुरुष अपने श्रेयसाधन से च्युत हो जाता है। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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