विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दद्वितीय अध्यायदुःखेष्वनुद्विग्नमनाः सुखेषु विगतस्पृहः। दैहिक, दैविक तथा भौतिक दुःखों में जिसका मन उद्विग्न नहीं होता, सुखों की प्राप्ति में जिसकी स्पृहा दूर हो गयी है तथा जिसके राग, भय और क्रोध नष्ट हे गये हैं, मननशीलता की चरम सीमा पर पहुँचा हुआ मुनि स्थितप्रज्ञ कहा जाता है। उसके अन्य लक्षण बताते हैं- |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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