म्‍हाँरो जनम मरन को साथी -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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विरह निवेदन

राग प्रभावती


म्‍हाँरो जनम मरन को साथी, थाँने नहिं बिसरूँ दिन राती ।।टेक।।
तुम देख्‍याँ बिन कल न पड़त है, जानत मेरी छाती ।
ऊँची चढ़चढ़ पंथ निहारूँ, रोय रोय अखियाँ राती ।
यो संसार सकल जग झूँठो, झूँठा कुलरा न्‍याती ।
दोउ कर जोड्यां अरज करत हूँ, सुण लीज्‍यो मेरी बाती ।
यो मन मेरो बड़ो हरामो, ज्‍यूँ मदमातो हाथी ।
सतगुरु दस्‍त धर्यो सिर ऊपर, आकुँस दे समझाती ।
पल पल तेरा रूप निहारूँ, निरख निरख सुख पाती ।
मीराँ के प्रभु गिरधर नागर, हरि चरणाँ चित राती ।। 106 ।।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. थाँने = तुमको, तुझे। छाती = हृदय। राती = लाल-लाल। न्याती = नाती वा नातेदार। जोड्याँ = जोड़ कर। हरामो = हराम, दुष्ट, अधर्मी। दस्त = हाथ। राती = रत, लगा।

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