म्‍हाँरा सतगुर बेगा आज्‍यो जी -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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सद्गुरु से विरह निवेदन


म्हाँरा सतगुर बेगा आज्यो जी, म्हाँरे सुखरी सीर बुवाज्यो। जी ।
तुम बीछडियाँ दुख पाऊँ जी, मेरा मन माँही मुरझाऊँ जी ।
मैं कोइल ज्यूँ कुरलाऊँ जी, कुछ बा‍हरि कहि न जणाऊँ जी ।
मोहि बाघण बिरह सतावै जी, कोई करियाँ पार न पावै जी ।
ज्यूँ जल त्याग्या मीना जी, तुम दरसण बिन खीना जी ।
ज्यूँ चकवी रैंण न भावै जी, वा ऊगो भाण सुहावै जी ।
ऊ दिन कबै करोला जी, म्हाँरे आँगण पाँव धरोला जी ।
अरज करै मीराँ दासी जी, गुर पद रज की मैं प्यासी जी ।।126।।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. म्हारा = हमारे, मेरे। वेगा = शीघ्र। म्हारे = हमा (यहां)। सीर = शीर वा दुग्ध की पवित्र धारा। बुवाज्यो = वहाँ दीजिएगा। बीछडि़याँ = बिछुड़ने से। मेरा... माँही = अपने मन में ही। मुरझाऊँ = उदास बनी रहती हूँ। कुछ = कुछ भी वेदना। वाघण = वाघिन के समान। क्रूर व निर्दय। ( देखो - ‘विरह बाघ बनि तनि बसइ, सेहर गाजइ आइ’ - ढोला मारूरा दूहा )। कहियाँ = कहकर। ज्यूँ = मानो। खीना = क्षीण। ऊगो = उगा हुआ। भाण = सूर्य। ऊ = वह। कवै = कब। करोला = करेंगे। धरोला = धरेंगे, रक्खेंगे। म्हाँरे...जी = मेरे आँगन में आप आयँगे। प्यासी = परेशान।

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