म्हाँरा ओलगिया घर आया जी -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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राग कजरी




म्हाँरा ओलगिया घर आया जी ।। टेक ।।
तन की ताप मिटी सुख पाया, हिलमिल मंगल गाया, जी ।
घन की धुनि सुनि मोर मगन भया, यूँ मेरे आणँद आया, जी ।
मगन भई मिलि प्रभु अपणासूँ, भौ का दरध मिटाया, जी ।
चंद कूं देखि कमोदणि फूलै, हरखि भया मेरी काया, जी ।
रग रग सीतल भई मेरी सजनी, हरि मेरे महल सिधाया, जी ।
सब भगतन का कारज कीन्हा, सोई प्रभु मैं पाया, जी ।
मीराँ विरहणि सीतल होई, देख दुन्दे दूरि न्हपसाया, जी ।।149।।[1]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. म्हाँरा = मेरे। अलगिया = अलग वा देर रह कर प्रवास करने वाले। ( देखो - ओलग्या = प्रवास किया - ‘ढाढी रात्यूँ ओलग्या गया बहु बहु भंत’ - ढोला मारू रा दूहा )। यूँ = इस प्रकार। दरध = दर्द, पीड़ा। कमोदणि = कुमुदिनी। सिधाया = पधारे। न्हसाया = नष्ट हो गया, दूर हो गया।

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