मो मन गिरिधर छबि पै अटक्यो -कृष्णदास मो मन गिरिधर छबि पै अटक्यो। ललित त्रिभंग चाल पै चलि कै, चिबुक चारु गडि ठठक्यो॥ सजल स्याम घन बरन लीन ह्वै, फिर चित अनत न भटक्यो। 'कृष्णदास किए प्रान निछावर, यह तन जग सिर पटक्यो॥ संबंधित लेख देखें • वार्ता • बदलेंकृष्णदास के पद बैद को बैद गुनी को गुनी • मो मन गिरिधर छबि पै अटक्यो • देख जिऊँ माई नयन रँगीलो • तरनि तनया तट आवत है • कंचन मनि मरकत रस ओपी • प्रातकाल प्यारेलाल आवनी बनी • गोकुल गाम सुहावनो सब मिलि खेलें फाग • सघन कुंज भवन आज फूलन की मंडली रचि • नंद घरुनि वृषभान घरुनि मिलि • रंगीली तीज गनगौर आज चलो भामिनी • नवल निकुंज महेल मंदिर में • कहत जसोदा सब सखियन सों • लाल गोपाल गुलाल हमारी आँखिन में जिन डारो जू • खेलत वसंत निस पिय संग जागी • आज कछु देखियत ओर ही बानक • तरणि तनया तीर आवत हें प्रात समे • लीला लाल गोवर्धनधर की • परम कृपाल श्री वल्लभ नंदन • फल्यो जन भाग्य • नवल वसंत नवल वृंदावन • श्री गिरिधर लाल की बानिक ऊपर • शरण प्रतिपाल गोपाल रति वर्धिनी वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ अं क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व श ष स ह क्ष त्र ज्ञ ऋ ॠ ऑ श्र अः