मो मन गिरिधर छबि पै अटक्यो -कृष्णदास

मो मन गिरिधर छबि पै अटक्यो -कृष्णदास

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मो मन गिरिधर छबि पै अटक्यो।
ललित त्रिभंग चाल पै चलि कै, चिबुक चारु गडि ठठक्यो॥
सजल स्याम घन बरन लीन ह्वै, फिर चित अनत न भटक्यो।
'कृष्णदास किए प्रान निछावर, यह तन जग सिर पटक्यो॥

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