मोहि लागी लगन गुरु चरनन की -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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सद्गुरु कृपा

राग धानी


मोहि लागी लगन गुरु चरनन की ।। टेक ।।
चरन बिना कछुवै नहिं भावै, जग माया सब सपनन की ।
भवसागर सब सूखि गयो है, फिकर नहीं मोहिं तरनन की ।
मीराँ के प्रभु गिरधर नागर, आस वही गुरु सरनन की ।।125।।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. लगन = प्रीति, आसक्ति। कछुवै = कुछ भी। सपनन = स्वप्नों। तरनन = पार करने की। सरनन = शरणों।

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