मोहि लई नैननि की सैन।
श्रवन सुनत सुधि-बुधि सब बिसरी, हौं लुबधी मोहन-मुख बैन।।
आवत हुते कुमार खरिक तैं, तब अनुमान कियौ सखि मैन।
निरखत अंग अधिक रुचि उपजी, नख-सिख सुंदरता कौ ऐन।
मृदु मुसुक्यानि हरयौ मन कौ मनि, तब तैं तिल न रहति चित चैन।
सूर स्याम यह बचन सुनायौ, मेरी धेनु कही दुहि दैन।।742।।