मोहन राखु पद-रज-तरै -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

वंदना एवं प्रार्थना

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राग बिहाग - ताल त्रिताल


मोहन! राखु पद-रज-तरै।
सुर-सुरेन्द्र-बिधि-पद नहिं चहियै, डारहु मुकुति परै।
जग-सुख के सब साज सँभारहु, इनतें दुख न टरै॥
सुख-दुख, लाभ-हानि जगकी सम, नैकौ मन न जरै!
बिनु बिराम छबि-धाम निरखि, तन-मन नित प्रेम गरै॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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