मोहन बदन बिलोकत अखियनि उपजत है अनुराग।
तरनि ताप तलफत चकोर गति पिबत पियूष पराग।।
लोचन नलिन गए राजत रति पूरन मधुकर भाग।
मानहु अलि आनंद मिले मकरंद पिबत रितु फाग।।
भँवरि भाग भृकुटी पर कुमकुम चंदन बिंदु विभाग।
चातक सोम सकधनु घन मैं निरखत मन बैराग।।
कुंचित केस मयूर चंद्रिका मंडल सुमन सुपाग।
मानहु मदन धनुष सर लीन्हे बरषत है बन भाग।।
अधर बिंब तै अरुन मनोहर मोहन मुरली-राग।
मानहु सुधा पयोधि धेरि धन ब्रज पर बरषन लाग।।
कुंडल मकर कपोलनि झलकत सम सीकर के दाग।
मानहु मीन मकर मिलि क्रीड़त सोभित सरद तड़ाग।।
नासा तिल प्रसून पदवी पर चिबुक चारु चित खाग।
दाड़िम दसन मद गति मुसुकनि मोहत सुर नर नाग।।
श्री गुपाल रस रूप भरो है, ‘सूर’ सनेह सुहाग।
ऐसी सोभा सिंधु बिलोकति इन अँखियनि के भाग।।1777।।