मोहन प्यारै कौ सुरँग हिडोरना झूलन जैबै हो।
ब्रज रसिक मोहिनी सुदरी सब कहति हँसि हँसि बैन।।
पावस काल गुपाल गोकुल बसत सब सुख चैन।
ते सखी सकल सुहागिनी जे जपति दै दै सैन।।
सावन मास हिंडारना पिय हमहि देहु गढ़ाइ।
झुलत गोकुल ग्वालिनी गिरिधरन गोकुलराइ।।
बालि बिसकर्मा लियो तब गढ़त लगी न झेरि।
सोन खभ सुदेस भौरा बन्यौ मरुबनि मोर।।
पटुली मयारि सकारि कै डॉडी सु आगम केरि।
गावति गुन गोपाल कहि कहिं चाह चहुँ दिसि होत।।
रसिक स्याम समीप झूलत देत पहिली पोत।
रमकन रसत हिडोरना पिय पीत पट फहरात।।
राधिका अबर सीस तै खसि ग़हि रही अचल दाँत।
तहाँ लटकि भुग की ओट भामिनि लटकि ग्रीवा जोत।
नैन खजन चपल चचल उड़न कौ अकुलात।।
बेनी भुअंगम भेद निरखि मुरि मुरि मुसुकात।
जैसीय दामिनि लसति घने मैं तैसोइ बरसत मेह।।
तैसीयै राधिका नारि भली भीजि लागी देह।
नील कंचुकि पीत उन परम स्याम सनेह।
वही होति बृज पति राय सो हँसि हिल कहति कुमारि।
'सूरदास' गोपाल प्यारी प्रीति परति निहारि।। 106 ।।