मैया कबहिं बढ़ैगी चोटी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग रामकली



मैया कबहिं बढै़गी चोटी?
किती बार मोहिं दूध पियत भई, यह अजहूँ है छोटी।
तू जो कहति बल की बेनी ज्यौं ह्वैहै लाँबी-मोटी।
काढ़त-गुहत-न्हवावत जैहैं नागिनि सी भुइँ लोटी।
काँचौ दूध पियावत पचि पचि, देति न माखन रोटी।
सूरज चिरजीवौ दोउ भैया,हरि-हलधर की जोटी।।175।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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