मैं व्रजवासिन की बलिहारी।
जिनके सग सदा क्रीडत है, श्री गोवरधनधारी।।
किनहूँ कै घर माखन चोरत, किनहूँ कै सँग दानी।
किनहूँ कै सँग धेनु चरावत, हरि की अकथ कहानी।।
किनहूँ कै सँग जमुना कै तट, वसी टेरि सुनावत।
‘सूरदास’ बलि बलि चरननि की, यह सुख मोहि नित भावत।।4053।।