मैं तो तेरी सरण परी रे रामा -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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राग सारंग


मैं तो तेरी सरण परी रे रामा, ज्यूँ जाणे त्यूँ[1] तार ।।टेक।।
अड़सठ तीरथ भ्रमि भ्रमि आयो, मन नाहीं मानी हार ।
या जग में कोई नहिं अपणा, सुणियौ श्रवण मुरार ।
मीराँ दासी राम भरोसे, जम का फंदा निवार ।।131।।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. इण
  2. सरण = शरण में। परी = आ गई हूँ। ज्यूँ... ज्यूँ = जिस प्रकार उचित समझे। अड़सठ तीरथ = अनेक वा सारे तीर्थ। सुणियौ श्रवण = कानों से सुनिये। जम... निवार = आवागमन से मुक्तकर।

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