मैं तो गिरधर के घर जाउ -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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अपनी टेक

राग गुनकली


मैं तो गिरधर के घर जाऊँ ।। टेक ।।
गिरधर म्‍हाँरो साँचो प्रीतम, देखत रूप लुभाऊँ ।
रैण पड़ै तब ही उठि जाऊँ, भोर गये उठि आऊँ ।
रैणदिना बाके सँगि खेलूँ, ज्‍यूँ त्‍यूँ वाहि रिझाऊँ ।
जो पहिरावै सोई पहिरूँ, जो दे सोई खाऊँ ।
मेरी उणकी प्रीत पुराणी, उण बिनि पल न रहाऊँ ।
जहाँ बैठावें तितही बैठूँ, बेचै तो बिक जाऊँ ।
मीराँ के प्रभु गिरधर नागर, बार-बार बलि जाऊँ ।।17।।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. म्हाँरो = मेरा। साँचो = वास्तविक। लुभाऊँ = मुग्ध हो जाती हूँ। रैण...तबही = राज होते ही। रैण दिना = रात दिन, बराबर। ज्यूँ त्यूँ = जिस किसी भी प्रकर से क्यों न हो। दे = दे देवे। पल = एक क्षण के लिये भी। रह ऊँ = रह सकती हूँ।

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