मैं जाणयो नाहीं प्रभु को मिलण कैसे होइरी -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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वियोग


राग सोहनी


मैं जाणयो नाहीं प्रभु को मिलण कैसे होइरी ।। टेक ।।
आये मेरे सजना फिरि गये अँगना, मैं अभागण रही सोइरी ।
फारूँगी चीर करूँ गल कंथा, रहूँगी बैरागण होइरी ।
चुरियाँ फोरूँ माँग बखेरूँ, कजरा मैं डारूँ धोइरी ।
निसबासर मोहि बिरह सतावै, कल न परत मोइरी ।
मीराँ के प्रभु हरि अबिनासी, मिलि बिछरो मति कोइरी ।।48।।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. प्रभु को मिलण = प्रभु से मिलना। जान्यौ नाहीं = जाना नहीं। सजना = पति, प्रियतम। फिरिगये = लौट गए। अँगना = आँगन से। अभागण = अभागिनी। सोइ = सोई। करूं... कंथा = गले में कंथावा गुदड़ी पहन लूँ। वैरागण = योगिनी। वखेरूँ = बिखरा दूं, मिटा दूं। मोई = मुझे।

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