मैं कह आजु नवै री आई।
बहुतै आदर करति सबै मिलि, पहुने की पहुनाई।।
कैसी बात कहति तू राधा, बैठन कौं नहिं कहियै।
तुम आईं अपनै घर तैं ह्याँ, हमहुँ मौन धरि रहियै।।
जानि लई बृषभानु-सुता हँसि, तरक कह्यौ तुम कीन्हौ।
सूरदास ता दिन कौ बदलौ, दाउँ आपनौ लीन्हौ।।1747।।