मैंने राम रतन धन पायौ -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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मैंने राम[1] रतन धन पायौ ।। टेक ।।
बसत अमोलक दी मेरे सतगुर, करि कि‍रपा अपणायौ ।
जनम जनम की पूँजी पाई, जग में सबै खोवायौ ।
खरचै नहिं कोई चोर न लेवै, दिन दिन बधत सवायौ ।
सत की नाव खेवटिया सतगुर, भवसागर तरि आयौ ।
मीरां के प्रभु गिरधर नागर, हरखि हरखि जस गायौ ।।157।।[2]




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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. नाम
  2. बसत = वस्तु। अमोलक = अमूल्य। अपणायौ = अपना लिया। पूँजी = मूलधन। खोवायौ = खो दिया। बधत = बढ़ता है। सवायौ = सवाया, अधिक-अधिक, विशेष। सत = सत्य। खेबटिया = केवट।
    विशेष- यहाँ पर रत्न के व्यवसाय का रूपक देखकर अपने प्रियतम के नाम स्मरण का व्यवहार स्पष्ट किया है।

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