मेरे दधि कौ हरि स्‍वाद न पायौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग रामकली


मेरे दधि कौ हरि स्‍वाद न पायौ।
जानत इन गुजरिनि कौ सौ है, लयौ छिड़ाइ मिलि ग्‍वा‍लनि खायौ।।
धौरी धेनु दुहाइ छानि पय, मधुर आँचि मैं औटि सिरायौ।
नई दोहनी पोंछि पखारी, धरि निरधूम खिरनि पै तायौ।।
तामैं मिलि मिस्रित मिसिरी करि, दै कपूर-पुट जावन नायौ।
सुभग ढकनियाँ ढाँकि बाँधि पट, जतन राखि छीकैं समुदायौ।।
हौं तुम कारन लै आई गृह, मारग मैं न कहूँ दरसायौ।
सूरदास-प्रभु रसिक-सिरोमनि, कियौ कान्‍ह ग्‍वालिनि मन भायौ।।1600।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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