मेर जिय यहई सोच परयौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिहागरौ


मेर जिय यहई सोच परयौ।
मन के ढग सुनौ री सजनी, जैसै मोहि निदरयौ।।
आपुन गयौ पंच संग लीन्हे, प्रथमहि यहै करयौ।
मोसो बैर, प्रीति करि हरि सौ, ऐसी लरनि लरयौ।।
ज्यौं त्यौं नैन रहे लपटाने, तिनहूँ भेद भरयौ।
सुनहु 'सूर' अपनाइ इनहुँ कौ, अब लौ रह्यौ उरयौ।।2225।।

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