मेरे हे जीवन-जीवन -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा माधव लीला माधुरी

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राग पीलू - ताल कहरवा


मेरे हे जीवन-जीवन! मेरे हे जीवन के रस!
मेरे हे भीतर-बाहर! मेरे हे केवल सरबस!
मैं नहीं जानती कुछ भी अतिरिक्त तुम्हारे प्रियतम!
मैं नहीं मानती कुछ भी बस, तुम्हें छोडक़र प्रियतम!
हर सभी पृथकता, मेरे रह गये एक तुम-ही-तुम।
कर आत्मसात्‌ ’मैं-मेरा’ सब कुछ अपने में ही तुम॥
अब तुहीं सोचते-करते सब ’मैं’ ’मेरा’ मुझमें बन।
नित तुहीं खेलते रहते बन मेरे चित्त-बुद्धि-मन॥
आनन्द मुझे तुम देते नित बने पृथक्‌ लीलामय!
अपने में अपने से ही तुम होते प्रकट कभी लय॥
नित मिलन बिरह की लीला चलती यों सतत अपरिमित।
होते सब खेल अनोखे नित सुख-वाञ्छा से विरहित॥
मैं कहूँ अलग क्या प्रियतम! कहते हो तुम ही सब कुछ।
सुनते भी तुम ही हो सब, तुम ही हो, मैं हूँ जो कुछ॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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