मेरे सांवरे मैं बलि जाउं भुजन की -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सोरठ


मेरे साँवरे मैं बलि जाउँ भुजन की।
क्यौं गिरि सबल धरयौ कोमल कर, बु‍भति हौं गति तन की।।
इंद्र कोपि आए ब्रज ऊपर बहुत पैज करि हारे।
गोपी ग्वाल कहत जोरे कर तुम हम सबनि उबारे।।
थार, तमोर, दूध, दधि रोचन हरषि जसोदा ल्याई।
करि सिर तिलक बदन अवलोकति, मनहुँ रंक निधि पाई।।
परति चरन कमलनि ब्रज-सुंदरि, हरषि-हरषि मुसुकाई।
फिरि-फिरि दरस करति एही मिस, प्रेम न परत अघाई।।
सूरदास सुरपति संकित ह्वै, सुरनि लिये संग आयौ।
तुम कृपालु अबिगत अबिनासी, काहूँ मरम न पायौ।।966।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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