मेरे मन मैं वे गुन गड़े।
तब जु कलोल कियौ कानन मैं, बहु बिधि लाड़ लड़े।।
कबहूँ पिय दधि दान लागि कै, झगड़ौ कठिन भड़े।
कहत जु स्याम बाल लीला मैं, बचन कठोर बड़े।।
अब वे बोल ह्वै रहे नाटसल, पुनि पुनि हिए अड़े।
‘सूरजदास’ उपाव कौन जो, हरि चिंबुक बिछुड़े।। 157 ।।