मेरे नैन निरखि सचु पावैं -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गुन सारंग


मेरे नैन निरखि सचु पावै।
बलि बलि जाउँ मुखारबिंद की बना तैं बनि ब्रज आवैं।।
गुंजा-फल अवतंस, मुकुट मनि, बेनु रसाल बजावैं।
कोटि-किरनि-मनि मंजु प्रकासित, उड़ुपति बदन लजावैं।।
नटवर रूप अनूप छबीले, सबहिनि कैं मन भावैं।
सूरदास-प्रभु चलत मंद गति, बिरहिनि ताप नसावैं।।1370।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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