मेरे तो गिरधर गोपाल -रामसुखदास पृ. 2

मेरे तो गिरधर गोपाल -स्वामी रामसुखदास

1. मेरे तो गिरधर गोपाल

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एक परमात्मा ही सब जगह परिपूर्ण हैं। उनके सिवाय और कोई है नहीं, कोई हुआ नहीं, कोई होगा नहीं, कोई हो सकता नहीं। वे परमात्मा ही मेरे हैं- ऐसा मानकर मस्त हो जाओ, प्रसन्न हो जाओ। हम अच्छे हैं कि मन्दे हैं, इसकी फिक्र मत करो। जैसे भरत जी महाराज चित्रकूट जाते हुए माँ कैकेयी की तरफ देखते हैं तो उनके पैर पीछे पड़ते हैं, और अपनी तरफ देखते हैं तो खड़े रहते हैं, पर जब रघुनाथ जी महाराज की तरफ देखते हैं तो दौड़ पड़ते हैं-

जब समुझत रघुनाथ सुभाऊ। तब पथ परत उताइल पाऊ ।।[1]

ऐसे ही आप अपनी करनी की तरफ मत देखो, अपने पापों की तरफ मत देखो, केवल भगवान की तरफ देखो। जैसे विदुरानी भगवान् को छिलका देती हैं तो भगवान् छिलका ही खाते हैं। छिलका खाने में भगवान् को जो आनन्द आता है, वैसा आनन्द गिरी खाने में नहीं आता। कारण कि विदुरानी के मन में यह भाव है कि भगवान् मेरे हैं। जैसे बच्चे को भूखा देखकर माँ जिस भाव से उनको खिलाती है, उससे भी विशेष भाव विदुरानी में है। ऐसे ही आप भगवान को अपना मान लो। जीने-मरने आदि किसी की भी परवाह मत करो। किसी से डरो मत। किसी की भी गर्ज करने की जरूरत नहीं। बस, एक ही विचार रखो कि ‘मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई’। अगर यह विचार कर लोगे तो निहाल हो जाओगे। परन्तु बहुत धन कमा लो, बहुत सैर-शौकीनी कर लो, बहुत मान-बड़ाई प्राप्त कर लो तो यह सब कुछ काम नहीं आयेगा-

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मानस, अयोध्या० 234/3

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