मेरे तो गिरधर गोपाल -रामसुखदास पृ. 18

मेरे तो गिरधर गोपाल -स्वामी रामसुखदास

3. अभेद और अभिन्नता

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एक रूप से जो ब्रह्म है, वही अनेक रूप से जीव है। अभिन्नता में ईश्वर के साथ एकता होती है। अंश-अंश की एकता अभेद है और अंश-अंशी की एकता अभिन्नता है। अंश-अंशी की एकता में प्रतिक्षण वर्धमान प्रेम होता है। प्रतिक्षण वर्धमान प्रेम में विरह होने पर भक्त मिलन की इच्छा करता है और मिलन होने पर चुप, शान्त हो जाता है! इस अवस्था का वर्णन भागवत में इस प्रकार किया गया है-

वाग्गद्भदा द्रवते यस्य चितं-
रुदत्यभीक्ष्णं हसति क्वचिच्च ।
विलज्ज उद्भायति नृत्यते च
मद्भक्तियुक्तो भुवनं पुनाति ।।[1]

‘जिसकी वाणी मेरे नाम, गुण और लीला का वर्णन करती-करती गद्गद हो जाती है, जिसका चित्त मेरे रूप, गुण, प्रभाव और लीलाओं को याद करते-करते द्रवित हो जाता है, जो बारंबार रोता रहता है, कभी हँसने लग जाता है, कभी लज्जा छोड़कर ऊँचे स्वर से गाने लगता है, तो कभी नाचने लग जाता है, ऐसा मेरा भक्त सारे संसार को पवित्र कर देता है।’

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्रीमद्भा० 11। 14। 24

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