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मेरे तो गिरधर गोपाल -स्वामी रामसुखदास
2. कामना, जिज्ञासा और लालसा
मनुष्य शरीर में आकर भोग और संग्रह में लग गये तो लाभ कुछ भी नहीं हुआ, वहीं-के-वहीं रहे। कोल्हू का बैल उम्र भर चलता है, पर वहीं-का-वहीं रहता है। ऐसे ही बार-बार जन्म लेते रहे और मरते रहे तो वहीं-के-वहीं रहे, कुछ फायदा नहीं हुआ। फायदा तभी होगा, जब हमारा भटकना मिट जायगा। इसलिये विचार करना चाहिये कि हम किसके अंश हैं? हम जिसके अंश है, उसको प्राप्त करने पर ही हमारा भटकना मिटेगा। मनुष्य शरीर मिल गया तो परमात्मा प्राप्ति का, अपना कल्याण करने का अधिकार मिल गया। कल्याण की प्राप्ति में केवल जिज्ञासा या लालसा मुख्य है। अपनी जिज्ञासा अथवा लालसा होगी तो कल्याण की सब सामग्री मिल जायगी। सत्संग भी मिल जायगा, गुरु भी मिल जायगा, अच्छे सन्त-महात्मा भी मिल जायँगे, अच्छे ग्रन्थ भी मिल जायँगे। कहाँ मिलेंगे, कैसे मिलेंगे-इसका पता नहीं, पर सच्ची जिज्ञासा या लालसा होगी तो जरूर मिलेंगे। आप कर्मयोग, ज्ञानयोग अथवा भक्तियोग, जिस योग मार्ग पर चलना चाहते हैं, उस मार्ग की सामग्री देने के लिये भगवान् तैयार हैं। परन्तु आप चलना ही नहीं चाहें तो भगवान् क्या करें? आपके ऊपर कोई टैक्स नहीं, कोई जिम्मेवारी नहीं, केवल आपकी लालसा होनी चाहिये। कल्याण की सच्ची लालसा वाला साधक बिना कल्याण हुए कहीं टिक नहीं सकेगा। गुरु मिल गया, पर कल्याण नहीं हुआ तो वहाँ नहीं टिकेगा। साधु बनेगा तो वहाँ नहीं टिकेगा। गृहस्थ बनेगा तो वहाँ नहीं टिकेगा। किसी सम्प्रदाय में गया तो वहाँ नहीं टिकेगा। भूखे आदमी को जब तक अन्न नहीं मिलेगा, तब तक वह कैसे टिकेगा? जिसमें कल्याण की अभिलाषा है, वह कहीं भी ठहरेगा नहीं। ठहरना उसके हाथ की बात नहीं है। जहाँ उसकी लालसा पूरी होगी, वहीं ठहरेगा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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