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मेरे तो गिरधर गोपाल -स्वामी रामसुखदास
15. अनिर्वचनीय प्रेम
संसार से अलग होने पर संसार का ज्ञान होता है और भगवान् से अभिन्न होने पर भगवान् का ज्ञान होता है। कारण कि जीव संसार से अलग है और भगवान् से अभिन्न है-यह वास्तविक, यथार्थ बात है। परन्तु शरीर-संसार से एकता मानने से संसार का ज्ञान नहीं होता और संसार का ज्ञान न होने से ही संसार की तरफ खिंचाव होता है। इसी तरह भगवान् से भिन्नता मानने से भगवान् का ज्ञान नहीं होता। संसार अपना नहीं है- इस तरह संसार का ज्ञान होने से संसार से सम्बन्ध-विच्छेद हो जाता है। भगवान् अपने हैं- इस तरह भगवान् का ज्ञान होने से भगवान् के साथ अभिन्नता होकर प्रेम हो जाता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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