मेरे आगैं महरि जसोदा -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गौरी


मेरे आगैं महरि जसोदा, तोकौं गारी दीन्ही।
वाही घात सबै मैं जानति, वै जैसी मैं चीन्ही।
तोकौं कहि पुनि कह्यौ बबा कौं, बड़ौ धूत वृषभान।
तब मैं कह्यौ ठग्यौ कब तुमकौं, हँसि लागी लपटान।
भली कही तू मेरी बेटो, लयौ आपनौ दाउ।
जो मोहिं कह्यौ सबै गुन उनके, हँसि-हँसि कहति सुभाउ।
फेरि-फेरि बूझति राधा सौं सुनत हँसति सब नारि।
सूरदास वृषभानु-घरनि, जसुमति कौं गावति गारि।।709।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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