मेरी तौ गति-मति तुम, अनतहिं दुख पाऊँ !
हौं कहाइ तेरौ, अब कौन कौ कहाऊँ !
कामधेनु छाँड़ि कहा अजा लै दुहाऊँ !
हय गयंद उतरि कहा गर्दभ-चढ़ि धाऊँ ?
कंचन-मनि खोलि डारि, काँच गर बँयाऊँ ?
कुमकुम कौ लेप मेटि, काजर सुख लाऊँ ?
पाटंबर-अंबर तजि, गूदरि पहिराऊँ ?
अंब सुफल छाँड़ि, कहा सेमर कौं धाऊँ ?
सागर की लहरि छाँढि, छीलर कस न्हाऊँ ?
सूर कूर, आँधरौ, मैं द्वार परयौ गाऊँ ?।।166।।