मेरी कैंती बिनती करनी।
पहिलै करि प्रनाम, पाइनि परि, मनि रघुनाथ हाथ लै धरनी।
मंदाकिनि-तट फटिक-सिला पर, मुख-मुख जोरि तिलक की करनी।
कहा कहौं, कछु कहत न आवै, सुमिरत प्रीति होइ उर अरनी।
तुम हनुमंत, पवित्र पवन सुत, कहियौ जाइ जोइ मैं वरनी।
सूरदास प्रभु आनि मिलावहु, मूरति दुसह दु:ख-भय-हरनी॥101॥