मेरी कैंती विनती करनी -सूरदास

सूरसागर

नवम स्कन्ध

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राग सारंग
सीता का चूड़ामणि-प्रदान


 
मेरी कैंती बिनती करनी।
पहिलै करि प्रनाम, पाइनि परि, मनि रघुनाथ हाथ लै धरनी।
मंदाकिनि-तट फटिक-सिला पर, मुख-मुख जोरि तिलक की करनी।
कहा कहौं, कछु कहत न आवै, सुमिरत प्रीति होइ उर अरनी।
तुम हनुमंत, पवित्र पवन सुत, कहियौ जाइ जोइ मैं वरनी।
सूरदास प्रभु आनि मिलावहु, मूरति दुसह दु:ख-भय-हरनी॥101॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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