मृदु मुरली की तान सुनावै, इहि बिधि कान्ह रिझावै।
नटवर-बेष बनाए ठाढ़ौ, बन-मृग निकट बुलावै।।
ऐसौ को जो जाइ जमुन तैं, जल भरि घर लै आवै।
मोर-मुकुट, कुंडल, बनमाला, पीतांबर फहरावै।।
एक अंग सोभा अवलोकत, लोचन जल भरि आवै।
सूर स्याम के अंग-अंग-प्रति, कोटि काम-छबि छावै।।1402।।