मृगनैनि तू अंजन दै -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सारंग


मृगनैनि तू अंजन दै।
नवल निकुंज कलिंदसुता तट, पी कौ सर्वसु लै।।
सोभित तिलक रुचिर मृगमद को भौंहनि बंक चितै।
हाटकघटनि सुधा पीवन कौ, नागिनि लट लटकै।।
नैन निरखि अँग अँग निरखि यौ अनख प्रिया जु तजै।
बादरबसन उतारि बदन यौ, चंदा ज्यौ न छपै।।
खंजमीन अंजन दै सकुचे, कवि सो काह गनै।
'सूर' स्याम कौ बेगि दरस दै, कामिनि मदन दहै।।2805।।

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