मूर्छित, तमसाच्छन्न जनों को -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

अभिलाषा

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राग वागेश्री - ताल कहरवा


मूर्छित, तमसाच्छन्न जनों को देकर बोध जगाऊँ मैं।
ज्ञान-दिवाकर की किरणों से, तमको तुरत मिटाऊँ मैं॥
प्रभु के निर्मल लीला-रस की सरस रागिनी गाऊँ मैं।
मुरझी हृदय-कुसुम-कलिका को पूर्णतया विकसाऊँ मैं॥
सूखे नीरस प्राणों में रस-सुधा सदा बरसाऊँ मैं।
श्रद्धा की शुचि सुधा पिलाकर, नित उनको सरसाऊँ मैं॥
गत-विश्वास संशयी पुरुषों का विश्वास बढ़ाऊँ मैं।
प्रभु की महिमा सुना-सुनाकर चरण-शरण दिलवाऊँ मैं॥
भयभीतों को अभय चरण का आश्रय अचिर कराऊँ मैं।
चिदानन्दमय सत्य सनातन निर्भय पद पहुँचाऊँ मैं॥
प्रभु के करुण हृदय के दर्शन दीनों को करवाऊँ मैं।
अशरण-शरण पतित-पावन प्रभु का संधान बताऊँ मैं॥
प्रभु की प्रेम-‌अमिय-रस-धारा उज्ज्वल अमल बहाऊँ मैं।
काम-स्वार्थ का मल धो, माँ धरती को सफल बनाऊँ मैं॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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