मुरली स्याम बजावन लागे।
अधर-सुधा-रस है वह पागी, आपुन ता रस पागे।।
धन्य-धन्य बड़ भागिनी नागरि, धनि हरि के मुख लागी।
धनि वह बन, धनि-धनि वह उपबन, जहँ बाँसुरी सोहागी।।
धनि वह रंध्र, धन्य वह अँगुरी, बारंबार चलावत।
सूर सुनत ब्रजनारि परस्पर, दुख-सुख दोऊ पावत।।1351।।