मुरली लई कर तै छीनि।
ता समय छवि कही जाति न, चतुर नारि नवीन।।
कहति पुनि पुनि स्याम आगै, मोहि देहु सिखाइ।
मुरलि पर मुख जोरि दोऊ, अरस परस बजाइ।।
कृष्न पूरत नाद, अछरत प्यारि रिस करि गात।
बार बारहि अधर धरि धरि, बजति नहि अकुलात।।
प्रिया भूषन स्याम पहिरत, स्याम भूषन नारि।
'सूर' प्रभु करि मान बैठे तिय करति मनुहारि।।2144।।