मुरली निदरै स्याम कौं, स्यामहिं निदराई।
मधुर बचन सुनि कै ठगे, ठगमूरी खाई।।
रहत बस्य वाके भये, सब मेटि बड़ाई।
वह तन मन धन ह्वै रही, रसना रस माई।।
वह कर, वह अधरनि रहै, देखौ अधिकाईं।
वहै कहति सो सुनत हैं, ये कुंवर कन्हाई।।
बन की बाढ़ी बापुरी, घर यह ठकुराई।
सूर स्याम कौं वा बिना, कछु नहीं सुहाई।।1311।।