मुरली गति बिपरीत कराई।
तिहूँ भुवन भरि नाद समान्यौ, राधा-रमन बजाई।।
बछरा थन नाहीं मुख परसत, चरति नहीं तृन धेनु।
जमुना उलटी धार चलीं बहि, पवन थकित सुनि बेनु।।
बिह्वल भए नहीं सुधि काहूँ, सुर-गंध्रब, नर-नारि।
सूरदास सब चकित जहाँ-तहँ ब्रज-जुवतिनि सुखकानि।।1067।।