मुरली कौन सुकृत फल पाए।
अधर-सुधा पीवति मोहन कौ, सबै कलंक गँवाए।
मन कठोर तन गाँठि प्रगट ही, छिद्र बिसाल वनाए।।
अंतर सून्य सदा, देखियति है, निज कुल बंस सुभाए।
लघुता अंग, नहीं कछु करनी, निरखत नैन लगाए।।
सूरदास-प्रभु पानि परसि नित, काम-बेलि अधिकाए।।661।।