मुरली कैं बस स्याम भए री -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग रामकली


मुरली के बस स्याम भए री।
अधरनि तैं नहिं करत निनारी, वाकैं रंग रए री।।
रहत सदा तन-सुधि बिसराए, कहा करन धौं चाहति।
देखी, सुनी न भई आजु लौं, बाँस बँसुरिया दाहति।।
स्यामहिं निदरि निदरि हमहुँ कौं, अबहीं तैं यह रूप।
सुनहु सुर हरि कौ मुंह पाऐं, बोलति बचप अनूप।।1231।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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