मुरली आपु स्वारथिनि नारि।
ताकी हरि प्रतीति मानत हैं, जीति न जानत हारि।।
ऐसे बस्य भए हरि वाके, कहा ठगौरी डारि।
लूटति है अधरनि को अंमृत खात देति है ढारि।।
को बकि मरे, बनी है जोरी, तृन तोरति हैं वारि।
सूर स्याम कौं भले कहति हौं, देउं कहा अब गारि।।1264।।