मुरली अधर सजी बलबीर -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग केदारौ



मुरली अधर सजी बलबीर।
नाद सुनि बनिता बिमोहीं, बिसारे उर-चीर।
धेनु मृग तृन तजि रहे, बछरा न पोवत छीर।
नैन मूँदे खग रहे ज्यौं, करत तप मुनि-धीर।
डुलत नहिं द्रुमपत्र बेली, थकित मंदसमीर।
सूर मुरली-सब्द सुनि, थकि रहत जमुना-नीर।।658।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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