मुरली सब्द सुनि ब्रज नारि -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग केदार


मुरली-शब्द सुनि ब्रज-नारि।
करत अंग-सिंगार भूली, काम गयौ तनु मारि।।
चरन सौं गहि हार बाँध्यौं, नैन देखतिं नाहिं।।
कंचुकी कटि साजि, लँहगा धरतिं हिरदय माहिं।।
चतुरता हरि चोरि लीन्ही, भईं भोरी बाल।
सूर प्रभु अति काम मोहन, रच्यौ रास गोपाल।।1001।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः