मुरलिया यह तो भली न कीन्ही।
कहा भयौ जो स्याम हेत सौं, अधरनि पर धरि लीन्ही।।
अंगुरी गहत गह्यौ जिहिं पहुँची, कैंसैं दुरति दुराऐं।
ओछी तनकहिं मैं भरुहानी, तनिकहिं बदन लगाऐं।।
जो कुल नेम धर्म की होती, दिन-दिन होतौ भार।
सूरदास न्यारे भऐं हमतैं, डोलत नंद-कुमार।।1305।।