मुख-छबि कहौं कहाँ लगि भाई।
भानु उदै ज्यौं कमल प्रकासित, रबि ससि दोऊ जोति छपाई।।
अधर बिंब, नासा ऊपर, मनु सुक चाखन कौं चोंच लगाई।
बिकसत बदन दसन अति चमकत, दामिनि-दुति दुरि देति दिखाई।
सोभित अति कुंडल की डोलनि, मकराकृत श्री सरस बनाई।
निसि दिन रटति सूर के स्वामिहिं, ब्रज-बनिता देहैं बिसराई।।639।।