मीराँबाई की पदावली पृ. 52

मीराँबाई की पदावली

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मीराँबाई व सुभद्रा तथा महादेवी

महादेवी के हृदय में भी करुणा का कुछ मीराँ जैसा ही, संचार है और प्राय: उन्हीं की भाँति, वह अनुभुति पर आश्रित भी समझ पड़ता है। वर्तमान संसार उनके मन के अनुकूल पड़ता नहीं दीखता, अतएव, उसकी प्रचलित व्यवस्थाओं से मानों ऊब कर वे एक अपनी नवीन काल्पनिक सृष्टि की रचना में प्रवृत्त हो, स्वप्न लोक में विचरण करने लगती हैं। परन्तु ऐसी चेष्टाओं में लगकर उनके बहुधा दार्शनिक आदर्शों के फेर में पड़ जाने के कारण, उनकी कविताओं में क्रिष्ट कल्पना का अंश अधिक आ जाता है और भावों की न्यूनाधिक अस्पष्टता के कारण, उनमें उनके अभीप्सित माधुर्य की सफल अभिव्यक्ति भी नहीं हो पाती।

महादेवी की भी वृत्ति प्राय: मीरां जैसी ही अंतर्मुखी है, परंतु उसे, मीराँ की भाँति, अपनी रहस्यमयी भावनाओं तक ही केंद्रित रखकर वे, कदाचित् 'मगन' हो जाना नहीं जानतीं। वे मीराँ से कहीं अधिक चिंतनशील होने के कारण, अपने भावों के विश्लेषण एवं उपयुक्त चित्रण पर भी तुल जाती हैं और कल्पना-बाहुल्य उनकी पंक्तियों की बहुधा भाराक्रान्त सा बना देता है। महादेवी की कविताओं में भी, इसी प्रकार, मीराँ की भाँति, हमें प्रवाह व संगीत के अनेक उदाहरण मिल जाते हैं, किन्तु उनका अधिकांश, वास्तव में, एक वैराग्य शीला महिला की अनुभूत भावनाओँ का सुव्यवस्थित संकलन है। मीराँ की कविता एक भुक्त भोगिनी के हृदय की सच्ची कहानी है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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