मीराँबाई की पदावली पृ. 51

मीराँबाई की पदावली

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मीराँबाई व सुभद्रा तथा महादेवी

प्रेमी की श्रेणी में आने वाली सफल हिंदी कवयित्रियों में, इसी प्रकार प्रसिद्ध आलम कवि की प्रेयसी सेख का नाम लिया जा सकता है। इन दोनों प्रेमियों का कविता काल, कदाचित् अधिकतर अठारहवीं ईस्वी शताब्दी में पड़ता है और ये दोनों रीति कालीन हैं। सेख ने, इसी कारण, अपनी प्राय: सभी रचनाओं में अपने समय की स्वीकृत परंपरा का ही अनुसरण किया है तो भी इनकी उपलब्ध कविताएँ कुछ न कुछ कृष्ण भक्ति द्वारा प्रभावित भी जान पड़ती हैं। इनकी कविताओं में पुर्ण प्रवाह व कवित्व की झलक आने पर भी मीरां के अलौकिक प्रेम की छटा कहीं नहीं दीख पड़ती और इनका लीला वर्णन भी प्राय: सब कहीं रूढि संगत होकर ही रह गया है। मीराँबाई की तुलना यदि हम आजकल की वैसी कवयित्रियों के साथ करने लगें तो, भावों की सुकुमारता एवं हृदय की तन्मयता को दृष्टि से, सुभद्राकुमारी चौहान को उनके बहुत कुछ निकट पाएंगे। श्रीमती चौहान ने श्रद्धा, वात्सल्य भाव एवं देश प्रेम संबंधिनी अनेक सुंदर कविताएँ लिखी हैं और उनके द्वारा अपनी स्त्री सुलभ कोमल वृत्तियों के व्यक्तीकरण में उन्हें अच्छी सफलता भी मिली है।

उनके हृदय में भावुकता है, शब्दों में सरलता है और पद्यों के प्रवाह की कमी नहीं, किंतु मीरां के साथ उनकी तुलना करते समय कुछ अंतर का आभास होने लगता है। सुभद्रा के हृदय में, कहीं अधिक से अधिक एक संयोगवश ठगी वा ठुकरा दी गई प्रेमिका की कसक है, उसमें मीरां जैसी विरहिणी की व्यापक वेदना लक्षित नहीं होती, उसमें पुन: किसी प्रकार स्वीकृति कर लिए जाने की प्रबल उत्कंठा है, किंतु मीरां जैसी बेचैनी का अभाव है, और इसी प्रकार, उसमें आत्म निवेदन वा आत्मसमर्पण के भी सुंदर भाव संचित हैं, किंतु उनके साथ मीरां जैसा आत्मीयता जनित अनूठा उमंग नहीं दृष्टिगोचर होता। तो भी स्मृति परिचय तथा त्याग के भाव सुभद्रा की कविताओं में बड़ी स्वाभाविकता के साथ व्यक्त किए गए हैं और उनमें देशभक्ति की भी भावनाएं भरी हुई हैं।

मीरांबाई की विरक्ति अथवा 'भगति-रसीली' की अनन्यता कुछ भिन्न क्षेत्र की बातें हैं, जिस विचार से उनके साथ, यदि हम चाहें तो, महादेवी वर्मा का नाम ले सकते हैं। महादेवी वर्मा ने बहुत सी कविताएँ लिखी हैं और कदाचित् अभी आगे भी लिखती ही जायँगी। उनकी विचार धारा एवं रचना-कौशल में अभी बहुत कुछ परिवर्तन या सुधार की सम्भावना है। परन्तु उपलब्ध कविताओं के आधार पर उनके विषय में, हम अब भी कुछ न कुछ विचार कर सकते हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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