मीराँबाई की पदावली पृ. 46

मीराँबाई की पदावली

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मीराँबाई व जायसी

जायसी की उक्त रचना के अंतर्गत एक राजा अथवा उसकी रानी के ही विरह का यथास्थल वर्णन है, किंतु उसके उपकरण बन कर आए हुए प्राकृतिक दृश्यादि के प्रसंग उसके द्वारा संपूर्ण विश्व की मौलिक एकता का संदेश देते हुए से जान पड़ते हैं। जायसी ने अपने बारह मासा वर्णन द्वारा भी, इसी प्रकार, नागमती की विरह दशा के साथ-साथ एक आदर्श हिंदू रमणी के हृदय की कोमल वृत्तियों का भी परिचय बड़ी सफलतापूर्वक दे डाला है। मीरांबाई ने भी अपने एक[1] द्वारा बारह मासे का वर्णन किया है, किंतु उन्होंने बारहों महीने की भिन्न भिन्न प्राकृतिक घटनाओं के ब्याज से अपने विरह व्यथित हृदय की दशा बड़े संक्षिप्त रूप से निवेदित की है। इनके विरह वर्णन में बाह्य प्रकृति वा परिस्थिति की ओर उतना ध्यान गया हुआ नहीं दीखता जितना अंत: प्रकृति अथवा अपनी आंतरिक वेदना की ओर। इनकी वृत्ति अत्यंत अंतर्मुखी है, बहिर्मुखी होने की दशा में वह परंपरानुसरण मात्र से अधिक प्रयास करने में असमर्थ हो जाती है – बाहर स्वच्छंद विचरण करने के लिए वास्तव में उसे कभी अवकाश ही नहीं मिलता।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पद 116

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