मीराँबाई की पदावली
मीराँबाई व जायसी
इसके सिवाय जिस प्रकार उक्त प्रेम गाथा में, जायसी ने पद्मावती को प्रेमपथ पर लाने में गुरुसुआ से सहायता ली है उसी प्रकार मीरां ने अपने इस ओर प्रवृत होने का संपूर्ण श्रेय गुरु रैदास को दिया है – मीरां ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि उनके ‘सुरत सहदानी’ देते ही ‘मैं मिली जाय पाय पिय अपना’[3]सैद्धांतिक दृष्टि से बहुत कुछ साम्य होने पर भी, इन दोनों कवियों की रचनाओं में, परिस्थिति भेद के कारण, पूरी भिन्नता भी दीख पड़ती है। उदाहरण के लिए जायसी ने अपने प्रबंध काव्य के साधन द्वारा प्रेमी एवं प्रेमपात्र दोनों पक्षों की दशा व पारस्परिक आकर्षणादि संबंधी व्यापारों के चित्रित करने की चेष्टा की है, किंतु मीरां ने केवल एक पक्ष अर्थात प्रेमिका की ही अवस्था को–और वह भी स्वयं उसी के शब्दों द्वारा - अंकित किया है। जायसी के प्रेम का रूप, इसी कारण, अधिक व्यापक तथा सर्वांगीण है और मीरां का प्रेम, कुछ व्यक्तिगत सा दीख पड़ने से जैसे किसी माधुर्य-भाव के भक्त के लिए ही आदर्श बन कर रह जाता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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