मीराँबाई की पदावली पृ. 45

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मीराँबाई की पदावली
मीराँबाई व जायसी


मीराँबाई की रचनाओं पर तुलनात्मक दृष्टि से विचार करते समय इसी कारण, हमारे सामने, उक्त विवेचना के अनुसार, हिंदी कवि जायसी का भी नाम स्वभावत: आ जाता है। मलिक मुहम्मद जायसी अवस्था में मीरांबाई से कदाचित कुछ बड़े थे और इनकी मृत्यु के अनन्तर बहुत दिनों तक वे जीवित भी रहे थे। उन्होंने दोहा चौपाहियों में 'पद्मावत' नामक प्रेमगाथा की रचना की और, उक्त मसनवी पद्धति के अनुसार, उसके द्वारा अपने सूफी सिद्धांतों का स्पष्टीकरण भी किया। जायसी की उक्त रचना एक प्रबंध काव्य है और उसकी भाषा भी अवधी है, किंतु मीरां ने अपने फुटकर पदों की रचना अधिकतर ब्रजभाषा एवं राजस्थानी में की है। जायसी एवं मीरां दोनों द्वारा प्रदर्शित प्रेम आरंभ से ही विरह-गर्भित व अलौकिक है और दोनों ने ही उसके कारण स्वरूप किसी पूर्व संबंध की ओर संकेत किया है। जायसी ने पद्मावती का सपन विचारूं बतलाती हुई सखी द्वारा उसका ‘पच्छिउँ खंड कर राजा’ के साथ विवाह होना निश्चित कहलाया है और इस बात को ‘मेटि न जाइ लिखा पुरिबला’[1] द्वारा अधिक दृढ़ भी करा दिया है और, प्राय: इसी प्रकार, मीरां ने भी अपने 'सुपने में परण' जाने का विवरण देकर उसका समर्थन पूर्व जनम के भाग द्वारा ही किया है[2]तथा बार-बार अपने और गिरधर की प्रीत पुराणी का उल्लेख भी किया है।

इसके सिवाय जिस प्रकार उक्त प्रेम गाथा में, जायसी ने पद्मावती को प्रेमपथ पर लाने में गुरुसुआ से सहायता ली है उसी प्रकार मीरां ने अपने इस ओर प्रवृत होने का संपूर्ण श्रेय गुरु रैदास को दिया है – मीरां ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि उनके ‘सुरत सहदानी’ देते ही ‘मैं मिली जाय पाय पिय अपना’[3]सैद्धांतिक दृष्टि से बहुत कुछ साम्य होने पर भी, इन दोनों कवियों की रचनाओं में, परिस्थिति भेद के कारण, पूरी भिन्नता भी दीख पड़ती है। उदाहरण के लिए जायसी ने अपने प्रबंध काव्य के साधन द्वारा प्रेमी एवं प्रेमपात्र दोनों पक्षों की दशा व पारस्परिक आकर्षणादि संबंधी व्यापारों के चित्रित करने की चेष्टा की है, किंतु मीरां ने केवल एक पक्ष अर्थात प्रेमिका की ही अवस्था को–और वह भी स्वयं उसी के शब्दों द्वारा - अंकित किया है। जायसी के प्रेम का रूप, इसी कारण, अधिक व्यापक तथा सर्वांगीण है और मीरां का प्रेम, कुछ व्यक्तिगत सा दीख पड़ने से जैसे किसी माधुर्य-भाव के भक्त के लिए ही आदर्श बन कर रह जाता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. जायसी ग्रंथावली, (का. ना. प्र. सभा ) पृ. 92।
  2. देखो पद 27
  3. देखो पद 159

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