मीराँबाई की पदावली पृ. 31

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मीराँबाई की पदावली
छंद

3. विष्णुपद - यह मात्रिक छंद भी पदावली के अंतर्गत 14 बार प्रयुक्त हुआ है। इसमें 16 और 10 के विराम से, 26 मात्रायें होती हैं और इसके अन्त में गुरु लघु आते हैं। इसके भी पद 200 में ‘रे’ अधिक है; और 136, 186, 188, 189, 190; असदि में बहुत फेरफार है।

4. दोहा छंद - संख्या के अनुसार पदावली के अन्तर्गत इस छंद का ही क्रम आता है। इसके 11 उदाहरणों में से बहुत कम जगह नियम का अनुसरण हुआ है इसके विषम चरणों में 13 तथा सम चरणों में 11 मात्रायें होनी चाहिए, अनत में लघु आना चाहिए तथा पहले एवं तीसरे चरणों के आदि में ‘जगण’[1] न होना चाहिए; परन्तु यहाँ भी पद 84 व 102 में ‘ई’; 25 में ‘हे’; तथा 29 में 'जी’ के बढ़ जाने से मात्रायें बढ़ गई हैं और 21, 47, 74 आदि में बहुत फेर फार आ गया है। पद 21 में ‘दोहे के साथ सार छंद का तथा पद 90 में उसीे के साथ ‘शोभन’ छंद का सम्मिश्रण हुआ है।

5. उपमान छंद - इस मात्रिक छंद में नियमानुसार 13 और 10 के विश्राम से 23 मात्रायें होती हैं और अन्त में दो गुरु आते हैं। परन्तु इसके प्रायः सभी उदाहरण में, गाने की सुविधा को ध्यान में रखकर, ‘हो’ शब्द अन्त में लगा दिया गया है।

6. समान रवैया - इस मात्रिक छंद में 16 व 16 के विराम से, 32 मात्रायें होती हैं और इसके अन्त में ‘भगण’[2]आता है। यह छंद चौपाई का दूना होता है। इस छंद के 7 उदाहरणों में से पद 67 के अन्त में ‘भगण’ न आकर ‘मगण’[3] आया है। और अन्य कई पदों में भी बहुत फेरफार है।

7. शोभन छंद - यह छंद 14 व 10 के विश्राम से, 24 मात्राओं का होता है और इसके अन्त में ‘जगण’[4]हुआ करता है। यदि अन्त में केवल लघु गुरु आ जाँय तो इसे ‘रूपमाला’ कहा करते हैं। परन्तु पद 1 के अन्त में न ‘जगण’ है और न लघु गुरु है, बल्कि उनकी जगह ‘नगण’[5] का प्रयोग हुआ है। पद 117 व 162 में शोभन छंद सरसी के साथ प्रयुक्त हुआ है और पद 174 व 195 में शोभन व रूपमाला दोनों ही आये हैं।

8. ताटंक छंद - यह मात्रिक छंद, 16 व 14 के विश्राम से 30 मात्राओं का होता है। इसके अंत में साधारणतः ‘मगण’[6] आना चाहिए, किन्तु कभी कभी केवल एक गुरु के भी प्रयोग देखे जाते हैं। पदावली के ताटंक वाले प्रायः सभी उदाहरण एक गुरु वाले हैं। पद 146 में ‘री’ का अतिरिक्त प्रयोग गाने के लिए हुआ है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अर्थात् लघु गुरु लघु
  2. अर्थात् गुरु लघु लघु
  3. अर्थात् गुरु गुरु गुरु
  4. अर्थात् लघु गुरु लघु
  5. अर्थात् लघु लघु लघु
  6. अर्थात् गुरु गुरु गुरु

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